प्राकृत भाषा: एक प्राचीन खजाना
प्राकृत भाषा, भारतीय उपमहाद्वीप की एक महत्वपूर्ण भाषा रही है। यह कोई एक अकेली भाषा नहीं, बल्कि मध्य भारतीय आर्य भाषाओं का एक समूह है जो प्राचीन संस्कृत से विकसित हुई। प्राकृत का शाब्दिक अर्थ है ‘नैसर्गिक’ या ‘स्वाभाविक’, जो शायद इसके लोकभाषा होने की ओर इशारा करता है।
प्राकृत भाषा का इतिहास अत्यंत समृद्ध है। यह वह भाषा है जिसमें जैन धर्म के कई महत्वपूर्ण आगम सूत्र लिखे गए हैं। भगवान महावीर के उपदेश इसी भाषा में दिए गए माने जाते हैं, जिसने इसे जैन समुदाय के लिए एक पवित्र भाषा बना दिया। बौद्ध धर्म के कुछ प्राचीन ग्रंथ, विशेषकर प्रारंभिक बौद्ध साहित्य भी प्राकृत में पाया जाता है। सम्राट अशोक के शिलालेख, जो भारत के इतिहास के महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं, भी प्राकृत के विभिन्न रूपों में उत्कीर्ण हैं।
प्राकृत केवल धार्मिक या ऐतिहासिक महत्व की भाषा नहीं है, बल्कि इसका अपना समृद्ध साहित्यिक संसार भी है। प्राकृत में कविता, नाटक, कथा साहित्य और व्याकरण जैसे विभिन्न विषयों पर उत्कृष्ट रचनाएँ मिलती हैं। हाल गाथा सप्तशती इसका एक अनुपम उदाहरण है, जो प्राचीन भारतीय लोकजीवन और प्रेम की भावनाओं को बड़ी सुंदरता से प्रस्तुत करता है।
आज भले ही प्राकृत भाषा का दैनिक जीवन में व्यापक उपयोग नहीं होता, लेकिन इसका अध्ययन हमें प्राचीन भारतीय संस्कृति, धर्म और साहित्य को गहराई से समझने में मदद करता है। यह एक ऐसा खजाना है जिसे सहेज कर रखना और अगली पीढ़ियों तक पहुँचाना हमारा कर्तव्य है।

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