जैन समुदाय शास्त्रीय भाषाओं के संरक्षण और प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, खासकर प्राकृत जैसी भाषाओं के लिए जिनका जैन धर्म के प्राचीन ग्रंथों में महत्वपूर्ण स्थान है। वे निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं:
- प्राकृत भाषा का अध्ययन और अध्यापन को प्रोत्साहित करना: जैन संस्थानों और समुदायों को प्राकृत भाषा के अध्ययन और अध्यापन के लिए केंद्र स्थापित करने चाहिए।
- प्राकृत साहित्य का संरक्षण और प्रकाशन: प्राचीन जैन ग्रंथों और साहित्य को संरक्षित करने और उनका अनुवाद व प्रकाशन करने के प्रयास करने चाहिए।
- जागरूकता बढ़ाना: जैन समुदाय के बीच प्राकृत भाषा के महत्व के बारे में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए।
- शैक्षणिक संस्थानों में शामिल करना: प्राकृत भाषा को जैन शैक्षणिक संस्थानों के पाठ्यक्रम में शामिल करने के प्रयास करने चाहिए।
- अनुसंधान को बढ़ावा देना: प्राकृत भाषा और साहित्य पर अनुसंधान को प्रोत्साहित करना चाहिए।
